गजल-३३
आँजुरमे भरि कऽ प्रीत रखने छियैक हम
सगतरि बना कऽ मीत रखने छियैक हम
सभटा गप मोने ऐ किछु नै बिसरलौं हम
सेंतने भाव मिठ्ठ-तीत रखने छियैक हम
उगलतै जँ बिख कियो परवाह नै तकर
करेजामे भरि कऽ शीत रखने छियैक हम
धरणि के घुन खेलकै सभ खाम छै कुठाम
तइयो ठाढ़ भाव-भीत रखने छियैक हम
पसरल कतेक दूर कक्कर सीमान छैक
सभटा नापि बीते-बीत रखने छियैक हम
किछु ठानि जँ लेलहुँ साधब नञि छै कठिन
मुट्ठीएमे भरि कऽ जीत रखने छियैक हम
मिथिलाक मान रखने परदेसोमे मैथिल
सहेजने अपन रीत रखने छियैक हम
सिनेह आ अपनैती भेटत जतए "नवल"
सुनबै लै गजल-गीत रखने छियैक हम
*आखर-१७ (तिथि-२५.०९.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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