गजल-४०
प्रेम के आखर कहब हम
नेह के कविता रचब हम
धर्म के हो चेतना धरि
कर्म के पूजा करब हम
वाणिमे हो मौध घोरल
भाव सरितामे बहब हम
आचरण आदर्श निश्छल
दूर निज अवगुण करब हम
चान बनि चमकब गगनमे
दीप बनि सभतरि जड़ब हम
शब्द के हम मान राखब
सत्य के संगे चलब हम
"नवल" ली संकल्प सभ पुनि
मनुख बनि सदिखन रहब हम
*बहरे रमल/मात्राक्रम-२१२२
(तिथि-०१.१२.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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