गजल-४१
आब मिथिलाराज चाही
मैथिली के ताज चाही
बाढ़ि आ रौदीसँ मारल
मैथिलो के काज चाही
बड़ रहल बेसुर इ नगरी
सुर सजायब साज चाही
गर्जना गुंजित गगन धरि
दम भरल आवाज चाही
संयमित सहलौं उपेक्षा
नवल नव अंदाज चाही
*बहरे रमल/मात्राक्रम-२१२२
(तिथि-०७.१२.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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