गजल-३७
ठेस लागए दियौ आंखि खूजत हमर
मोह मोनक तखने जा टूटत हमर
संगे बटुआ रहत संगी भेटत कते
काज हेतै ओकर टाका बूकत हमर
मानि जकरा अपन अपनोंसँ गेलहुं
कहियो नामो किएक ओ पूछत हमर
सुझतै मुस्की ई ठोढ़क तऽ सभके मुदा
बात मोनक किए कियो बूझत हमर
किछुओ बाँचल ने संग सिनेहक सिवा
लोभी दुनिया कथी आब लूझत हमर
अपना देहक जे दोष से झंपने रहू
सभके माथा के टेटर सूझत हमर
मोह देवे-पितर के रहल नै जखन
मनोरथ मनुखसँ की पूरत हमर
हँसि कऽ जिनगीक माहुर पीबै "नवल"
देहसँ प्राण जाधरि ने छूटत हमर
*आखर-१५ (तिथि-२१.१०.१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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