मंगलवार, 26 जून 2012

गजल


गजल-११
ओहिना आंइख की कम कारी जे काजर के विनयास केलौं
मेघ करिकबा भादव केऽ तकरो रंगक परिहास केलौं
अरिकंचन सन काया तैऽ पर ई सोलह श्रृंगार गजब
पिया मिलन के राति अहाँ श्रृंगार अलग किछु खास केलौं
नेह छोड़ि नमरी लऽ नचलहुं जीवन गेल निरसता में
देश-विदेश कतेऽ छिछियेलौं अनढन केऽ वनवास केलौं
मानल छी दोखी हम सजनी मुदा आब सप्पत ल लीयऽ
गोल-गोल कारी नयना कियै काजर पोईछ उदास केलौं
अनुराग शेष नहि टाका केऽ कोठा नेऽ आब बखारिक मोह
अहीं करेजा प्रीतक धन लऽ "नवल" आब घरवास केलौं
***आखर-२२
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-
२५.०६.२०१२)


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