गजल-११ |
ओहिना आंइख की कम कारी जे काजर के विनयास केलौं |
मेघ करिकबा भादव केऽ तकरो रंगक परिहास केलौं |
अरिकंचन सन काया तैऽ पर ई सोलह श्रृंगार गजब |
पिया मिलन के राति अहाँ श्रृंगार अलग किछु खास केलौं |
नेह छोड़ि नमरी लऽ नचलहुं जीवन गेल निरसता में |
देश-विदेश कतेऽ छिछियेलौं अनढन केऽ वनवास केलौं |
मानल छी दोखी हम सजनी मुदा आब सप्पत ल लीयऽ |
गोल-गोल कारी नयना कियै काजर पोईछ उदास केलौं |
अनुराग शेष नहि टाका केऽ कोठा नेऽ आब बखारिक मोह |
अहीं करेजा प्रीतक धन लऽ "नवल" आब घरवास केलौं |
***आखर-२२ (सरल वार्णिक बहर) पंकज चौधरी (नवलश्री) (तिथि-२५.०६.२०१२) |
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मंगलवार, 26 जून 2012
गजल
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पंकज चौधरी (नवलश्री)
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