सोमवार, 25 जून 2012

गजलक भाषा

पहिले त हम कह' चाहब जे हमरा भाषा के बेसी ग्यान नै अछि ,मुदा हमर सोच सँ समाज मे दू टा भाषा अछि- साहित्यक भाषा आ बोलचालक भाषा ।
जत' साहित्यकार मूल शब्द के छोड़ि ओकर पर्यायवाची लिखै छथि {इ कविता मे भेटत} ओत' बोलचाल मे मूल शब्दक प्रयोग होइ छै ।

साहित्यक भाषा मे , "फूल" के "प्रसून ,मंजरी "
, "नदी "के अपगा तरंगिणी ,
प्रकाश के दीप्ति , द्दुति
पक्षी के नवचर , पतंग
ऐ तरहक कतेको शब्द अछि जकर पर्यायवाची लिखल जाइ छै ।
आब कहू जँ केओ विग्याN वा भाषा छोड़ि आन विषय सँ पढ़ने छथि त' की हुनका सँ एहि तरहक सब शब्दक अर्थ पता होइ के संभावना कते छै ?

गजल वा शेर सुनला के तुरंत वाद लोक अपन प्रतीक्रिया दै छथि वाह! के रूP मे जँ शेर खत्म भेला के बादो ओ शब्दक अर्थ खोजैत रहताह त' की ओ चरम भेट पेतै जे गजल सँ भेटबाक चाही?

हम अपन बात कहै छी जे कविता हमरा ओतेक नीक नै लागै यै किएक त' हमरा लग एते शब्दक भंडार नै अछि तेँए बहुतो बात नै समझि पाबै छी आ हमरा लागै यै जे हमरा सन बहुतो और छथि ।
गजल के गाओल जाइ छै तेँए एकर भाषा सरल हेबाक चाही से हमर मत अछि ।
किएक त' एकरा जन जन , गाम गाम धरि पहुँचेबाक अछि ।
ओना हमरो गजल मे किछु एहन शब्द भेटि सकै यै |

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों