गजल-१४
मोहक मद में मातल जेऽ मोनक मीत बनै छी
ठेस कोना नञि लागत आन्हर भऽ प्रीत करै छी
श्रृंगारक पाछा आन्हर केलौं नै प्रेमक मोजर
श्यामल तन अनुरागे से विरहे पीत पड़ै छी
पापी पेट पोसै लै परदेस देलौं पेटकुनिया
भरि जग सँ बौएलौं आब घरक भीत धरै छी
हाइरक डर डेरा कऽ छोड़ि देलौं सच बाजब
फूइसक गाछ छड़पि कऽ दुनिया जीत कनै छी
काँट - कूश सभ नंघलौं आऽब बाट जुनि पलटू
अहाँ संउसे खीरा खा कऽ कियै पेनी तीत करै छी
अनका सोझ उगललौं जेठक रौदी सन बोली
धधकल अपन करेजा पूसक - शीत तपै छी
अनकर मोन कलपतै कल्पऽ दियौ की करबै
अपना नीकक चिंता मनमरजी रीत रचै छी
कर्मक ई बान्ह-बन्हौटा कियै बान्है छियै अनेरे
बस चारि डेग चललौं आ से बीते-बीत नपै छी
"नवल" रमल अपना में कविता - पाठ करै छी
गजल कहै छी कखनो आ कखनो गीत गबै छी
***आखर-१८
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२८.०६.२०१२)
मोहक मद में मातल जेऽ मोनक मीत बनै छी
ठेस कोना नञि लागत आन्हर भऽ प्रीत करै छी
श्रृंगारक पाछा आन्हर केलौं नै प्रेमक मोजर
श्यामल तन अनुरागे से विरहे पीत पड़ै छी
पापी पेट पोसै लै परदेस देलौं पेटकुनिया
भरि जग सँ बौएलौं आब घरक भीत धरै छी
हाइरक डर डेरा कऽ छोड़ि देलौं सच बाजब
फूइसक गाछ छड़पि कऽ दुनिया जीत कनै छी
काँट - कूश सभ नंघलौं आऽब बाट जुनि पलटू
अहाँ संउसे खीरा खा कऽ कियै पेनी तीत करै छी
अनका सोझ उगललौं जेठक रौदी सन बोली
धधकल अपन करेजा पूसक - शीत तपै छी
अनकर मोन कलपतै कल्पऽ दियौ की करबै
अपना नीकक चिंता मनमरजी रीत रचै छी
कर्मक ई बान्ह-बन्हौटा कियै बान्है छियै अनेरे
बस चारि डेग चललौं आ से बीते-बीत नपै छी
"नवल" रमल अपना में कविता - पाठ करै छी
गजल कहै छी कखनो आ कखनो गीत गबै छी
***आखर-१८
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२८.०६.२०१२)
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