मोनसँ पढ़लकै लिखलकै पोथी हजार ओ
तैयो भटकि रहल छै बनि बेरोजगार ओ
नै छै एत' कारखाना जाएत लोक कत'
सपना टूटि गेल भीखे माँगत बजार ओ
दोसर ठाम पेट काटिक' कोना रहत बचल
छै पहिलेसँ देह केने सौँसे उघार ओ
बदलल लोक आब अपना अपनी त' होइ छै
भेटल रोजगार नै भेटै नै उधार ओ
फहराएत सगर झंडा ताकत त' छै बचल
पर की करत बनल छै सब अपने बिहार ओ
सोचै छी भ' जाइ एखन एहन सन प्रलय
नै बचतै "अमित" इ भूखल देहक पथार ओ
मफऊलातु-फाइलुन दू बेर
2221-212-2221-212
अमित मिश्र
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