कान नै अपन देखब कौआ खिहारब
कहु-कहु कोना आहाँ मिथिला सुधारब
घोघ तर कनियाँ कोठी तरहक माछ
मोन होइतो कहु कियो कोना निघारब
लागल आगि जीवनक मिझाएब कोना
की जीवन भरि खड़ेल खड़े पजारब
कहियो त ' बसब आ ककरो बसाएब
भटकैत सीथ कतेक आरो उजारब
पानि केखनो 'मनु' पियासलो केँ पियेब
की बनि नादान परती पर टघारब
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१५)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या - ५९
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