बुधवार, 27 जून 2012

गजल


गजल-१२

सजनी रहि-रहि टेमी बारी
भरि कजरौटा काजर पारी

थोपि रहल छी काजर सौंसे
ओहिना मादक नयना भारी

आंखिसँ आँखिक फेरम-फेरी
जेना होय मऊहक़ के थारी

देह रहल आ प्राण बिलेलै
नयन-वाण सँ जिवते मारी

करिया आँखिक पोखरि कात
स्वप्न सेहनता केर बैसारी

कहू छोडि ई आँखिक अमृत
पीब कियैक हम दारु -तारी

मोन के जीतैऽ जे तकरा पर
"नवल" कियै ने जीवन हारी

***आखर-११
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२६.०६.२०१२)



























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