हमर शब्द केँ नै बुझु जनु हलाली छुरी यौ
जे पटैक ककरो काटि रहल होइ मुरी यौ
हमर शब्द नै बान्हि कोनो प्रश्नकेँ बरेरी मे
दु पैसा बचबई लेल बेचय बट्टी-कुरी यौ
हमरा नै चाही लुल्हुआ-डुबौन क्षीर-भोजन
नै चाही तरल मुर्गा-टाँग, कि हलुआ पुरी यौ
लोभ नै हमरा मोफ़तक टका-टकसालक
बस नै चाही हमरा इनामक एक्को ठुरी यौ
कहकह आगि शब्द हमर तेँ अंगोरे तबै
डाहै चाहे स्त्रीक दुर्गत्तिक समाजिक रूढ़ि यौ
बस कोनो स्त्रीक अस्मिता आब नै जोक्सर चढ़ै
धी-बहिनक सपना मे सजै सिन्दुर-चुरी यौ
"शांतिलक्ष्मी"क शब्द सजबै एतबे सेहेनता
नारी सददि बनल रहै गृहस्तिक धुरी यौ
..........वर्ण १७.........
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