गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

गजल


अंगने अंगने देखियौ कोना काँट बुनल छै
भाय भैयारी मे फटेदारीक फाँट उठल छै


समाजक नीक लोक पंचैती नहिये अयतै
छुटल मुँह छौरा के नंगरझाँट देखल छै


गामक लिच्चर धs मसलन घोटै चायपान
मन खाली शैतानी आ बनरबाँट भरल छै

मजगुतहा लठिधरवा करै कुकुरालुझि
तेलही लाठी संग बबुरक झाँट उठल छै

निरदुब्बर सभ छैहिये डर सँ मुह सीने
मोन मे लठियाक गैरिक कोराँट भरल छै


माय-बाप केँ हिस्सा दै मे सभ करै खबखब
बुढ़ारी मे तेरहो गंजन आ डाँट धरल छै

गैरिखोरवा सभ होसथलकै निकहरवा
चुप छै तेँ कि हुनका मुँहक बाँट भेटल छै

"शांतिलक्ष्मी" देखय जकरे लाठी तकरे भैंस
समाज मे आइयो उचितक टाँट पड़ल छै

..................वर्ण-१७................


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