हेतै की आब बूझाय नै एहि देश मे।
देश फँसल अछि घोटाला आ केसमे।
कोना केँ बचायब आब घर चोरी सँ,
फिरै छै चोर सगरो साधुक भेष मे।
जरै छै गाम, तखनो बंसी बजाबै ओ,
बूझै नै लिखल देबालक सनेस मे।
शिकारी मनुक्खक बनल छै मनुक्खे,
गोंतै छै सब बाट आ घरो कलेश मे।
बेईमानीक पताका फहरै आकाश,
पाकै ईमान आब पसरल द्वेष मे।
---------- वर्ण १४ ------------
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