बाट जाम होइ की मगज, बिकास रुकबे करतै
धिरे गाम, कि होइ सहर, निकास भेटबे करतै
हम बेचब, बडद के बारहे टका मे ,ककरो की
कहुना, नाम यश औ मान, पियास मेटबे करतै
शब्द उधारे होइ, बात दुनियाँ के समझेबै हम
गीत नाद होइ कि गजल, जहान सुनबे करतै
कहबाक अछि त कहु, किछ प्रशंशा मे हमरो यौ
नै सिखब ई बर्ण बिन्याश, दिमाग उडबे करतै
लक्ष भाषा राजsक मात्र अछि तs मिलकय लडियौ
बात बात होइ की झगड सन्त्राश बढबे करतै
बिभिषण जयद्रथ तs देखु भेटत सभ ठमन
अर्जुन दृष्टि नै तs निश्फल प्रयाश होएबे करतै
साँप एक आ बीन दशटा बजायब तs बुझिते छी
ने नाचत साँप निश्चित उपहास होयबे करतै
लहैर उठत मैथिली के एहन, देखैत छि हम
लियौ हाथ मे हाथ सफल प्रयाश होयबे करतै
--------- बर्ण-१९-------------
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