ओष के अन्हरियॉ में भॅ गेल मुलाकॉत बुचियाँसँ |
नॅजॅर मिलल तॅ लागल सबटा गॅप भॅ गेल हुनकासँ |
हुनका आँखी में छल एहन सुरमा कि हम कि कहू |
हमर पुरा देह के रोंई क लेलक दिल्लगी हुनकासँ |
वस्त्र छल किछु एहन ऊपर लिपिस्टिक के एहसास |
आखिर धौला कुआं में क लेलो छेर-छार हुनकासँ |
गाबैऽ लगलैन् हुनकर चुप्पी किछु सुन्दर गज़ल |
समाँरल नै जै छलैन "मोहन जी" ख्याल हुनकासँ |
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शनिवार, 31 दिसंबर 2011
गजल
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अजय ठाकुर (मोहन जी),
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