अनचिन्हार आखर
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शेर जे सभ दिन शेर रहतै
शनिवार, 10 दिसंबर 2011
गजल
हमरा अहां तोड़लहुं सपना बुझि के
हमरा अहां छोडलहु अपना बुझि के
हमर अस्तित्व अछि आश्रित अहीं पर
हमरा अहां लिखलहुँ रचना बुझि के
हम छी शीतल निर्झर, बहैत सिनेह
हमरा लग चल आउ झरना बुझि के
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