अनचिन्हार आखर
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शेर जे सभ दिन शेर रहतै
गुरुवार, 29 दिसंबर 2011
गजल
प्रस्तुत अछि मनोहर कुमार झाक इ गजल।
हम गिद्दरकेँ घोड़ होइत देखने छी
इ कथा तँ साँझ-भोर होइत देखने छी
बैसल चुप-चाप माए-बाप बौके सन
बेटाक तामस जोर होइत देखने छी
हँसै छै सरकार भभा कए सदिखन
लोकक आँखिमे नोर होइत देखने छी
दाइ ओ तँ खाली मूँहे के छै पिअरगर
मनोहरकेँ कठोर होइत देखने छी
वर्ण--१५
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