लोकपाल! लोकपाल! जनलोकपाल! जनलोकपाल!
देसधर्म रक्षा लेल घुरि आउ हे गोविन्द! हे गोपाल!
कुरुक्षेत्र मे ता बाकयुद्ध केर घमासान मचल छै
अधर्म कपटी-भूप जनताकेँ पटकवा मे बेहाल
गोंगियाइत राजाक बेलज्ज प्यादा फुच-फुच उछलै
राज-मोहक आन्हर धृष्टराष्ट्रक घिचपिच घौंचाल
दुर्योधन-दुसाशन राष्ट्रक चीरहरण लs आतुर
राजलक्ष्मी केँ नग्न नचेताह मातृभुमियेक भुपाल
भीष्म द्रोण कर्ण पदत्यागि केँ धर्मक संग ठाढ़ भेल
लs लोकतंत्रक अस्त्र, सत्य-अहिंसा उपासक सुढ़ाल
"शांतिलक्ष्मी" कलजोड़ि अनुनय सुविनय करै अछि
हौइयौ आबो प्रगट हे कृपाल! हे प्रभु दीन-दयाल!
.................वर्ण २०.............
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