मारी माछ नहि ऊपछी खत्ता
भरि समाज घोडन केँ छत्ता
परचट्ट बनल जनता छी
खाई छी गरदनि पर कत्ता
कांकोड बिएल कांकोडे खए
भय गेल देशक लत्ता-लत्ता
सगरो नाँघल जाईत अछि
छन छन मरीयादा केँ हत्ता
रहब भरोसे कतेक दिन
भेटे एक दिन हमरो भत्ता
(वर्ण-११)
जगदानन्द झा 'मनु'
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