हमर अहाँकेँ प्रीतक खिस्सा आब दुनियाँ बिसरत नहि
युग-युग तक लोकक मोन सँ अपन नाम घटत नहि
सूर्य चान केँ प्रेमालाप सँ ई दुनियाँ प्रकाशित अछि भेल
हुनकर संग बिनु कखनहुँ ई दुनियाँ चमकत नहि
भोला शंकर डमरू बजाबथि पारवती नाचैत अँगना
हुनकर दुनू केँ इक्षा बिनु कएखनो श्रृष्टि चलत नहि
कृष्ण नचाबथि सगरो गोकुल गोबरधन पर्वत उठा
बिनु राधिका संग कएखनो हुनक मुरली बजत नहि
फूल भोंडा केँ प्रीतक खिस्सा सभतरि बहुत पुरान भेलै
'मनु' 'सुगँधाक' नाम बिनु प्रेम कथा आब गमकत नहि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या - ५७
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