गजल-५०
आखर आखर सजालिखै छी गीत अहाँ ले सजनी
चाँचर पाँतरहम तकै छी प्रीत अहाँ ले सजनी
अपन करेजाकोड़ि माटि,सौरभ पुनि मिझरेलौ
नेहक रस मेभीजा गढ़ै छी भीत अहाँ ले सजनी
अहाँक रूप केआगाँ हम हारि गेलहु अपना के
अप्पन हारिबिसारि लिखै छी जीत अहाँ ले सजनी
मधुर मिलन केबेला कहियो तऽ मधुघट पीबै
सोचि-सोचि घट-घट पिबै छी तीत अहाँ ले सजनी
अँगना, घर, दलान, सजा, बाट तकैत छीबैसल
"चंदन"नेहकबुन्न तकै छी शीत अहाँ ले सजनी
-----------वर्ण-१९----------
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