घोड कलियुग घडी केहन आबि गेलै
एकटा कंस घर घर में पाबि गेलै
बनल अछि रक्षके भक्षक आब सगरो
विवश जनताक हक सबटा दाबि गेलै
अन्न खा ' थाह पेटक किछु नै पएलक
मालकेँ सगर भूस्सा चुप चाबि गेलै
शहर नै गाम आ घर- घर आब देखू
पूव देशक हबा में सभ आबि गेलै
आजु फेशन कए नव पोसाक में डुबि
एक गज में अरज देहक पाबि गेलै
(बहरे असम, मात्रा क्रम- २१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या- ५५
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें