सोमवार, 11 जून 2012

गजल


घोड कलियुग घडी केहन आबि गेलै   
एकटा कंस घर घर में  पाबि गेलै  

बनल अछि रक्षके भक्षक आब  सगरो   
विवश जनताक हक सबटा  दाबि गेलै 

अन्न खा ' थाह पेटक किछु नै पएलक  
मालकेँ सगर भूस्सा चुप  चाबि गेलै  


शहर नै गाम आ  घर- घर आब देखू 
पूव देशक हबा में सभ आबि गेलै 

आजु  फेशन कए नव पोसाक  में डुबि
एक गज में अरज देहक पाबि गेलै  



(बहरे असम, मात्रा क्रम- २१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या- ५५ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों