प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल---
फाटैत छल जतए मेघ आ जमीन
पहुँचल पहिने ओतहि अभागल
बुझनुक बुझए सियार अपनाकेँ
जा धरि छल टिकल नीलमे राँगल
फँसि गेल अपनेसँ व्यूहमे बेचारा
नै भेलै लाठी अपने ओकरा भाँजल
जत' शेर राज करै छल पहिनेसँ
बुधियार छल ओ पहिनेसँ माँजल
सियार जा क' पढ़ौलक मंत्र जखन
प्रजा शेरसँ छल पहिनेसँ साधल
आखर---14
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