दर्द करेजक देखाएब तs अहाँ जानब की
हमर बात कनी सपनो में अहाँ मानब की
अहाँ कहलौं पुरुषक प्रेम गोबर आ रुई
करेज चीरो कs देखायब तs अहाँ कानब की
दोख एकेटा में होई छैक सबमे कत्तौ नहि
सबके संग हमरो अहाँ ओहि में सानब की
अहाँ कहैत छी सबठाम अन्हारे-अन्हारे छै
इजोरियाके आँखि मुनि अन्हरिया मानब की
एक बेर हमरो पर भरोसा कय कs देखु
प्रेम केकरा कहैत छैक 'मनु' सँ जानब की
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-२१
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