केहन-केहन दुनियाँ, केहन-केहन रंग एकर
कियो हँसैए कियो कनैए,कियो झुमैए संग एकर
कियो मरैए दुधक द्वारे,कियो भाँग में डुबल अछि
बुझि नहि पएलहुँ आइतक कनिको ढंग एकर
लक्ष्मीके देखलौं पथैत चिपड़ी,कुबेड चराबे पारी
गंगा-यमुना पानि भरैत,की हमहुँ छी अंग एकर
भोट मांगे पोहला-पोहला कs,गदहो के बाप बना कs
जितैत देखु गिरगिट जेकाँ बदलैत रंग एकर
'मनु' छल कारिझाम चिन्हार बनोलन्हि अनचिन्हार
घरी-घरी में बदलैत देखु आब तs उमंग एकर
-- - - - - - - - -वर्ण-२० - - - - - - - - - - -
***जगदानंद झा 'मनु'
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रविवार, 19 फ़रवरी 2012
गजल
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जगदानन्द झा 'मनु'
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