फूल सँ कोमल अहाँ छी प्रियतम देखु केखनो मौलाएब नहि
राखु सम्हारि कए एहि फूल केँ एकरा केखनो सुखाएब नहि
हमरा लेल एलहुँ खुसी बनि, अहाँ कनिको बिसराएब नहि
सदिखन हमरे ह्रदय में रहब, केखनो छोरि जाएब नहि
चाहे मिलन हुए चाहे विरह, मिसियो भरि खिसियाएब नहि
हमर धरोहर छी अहाँ प्रियतम केखनो त ' मौलाएब नहि
जे कियो केखनो अनर्गल कहे, अहाँ कनिको पतियाएब नहि
इ समर्पित अहाँ केँ हमर, दोसर केँ केखनो सुनाएब नहि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२४)
जगदानन्द झा 'मनु'
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