कोबी, टमाटर, भट्टा, ये लय आर जाय जैइबै मिरचाय ये
लहसुन हरदि उहो छै, ये सुनय आर जाय छियै माय ये
ये गिरहतनी लय जैइबै त बाजु सुभिते मे दै देब आइ
चिजो भेटत एकलम्बर, एक्को चिज नै भेटत अधलाय ये
कोबी टमाटर धानक तीन खुटे, भट्टा मिरचाय फाँटि कय
अल्लु चलु बरोबरि, मुदा हरदीक लागत नकत पाय ये
हे गिरहतनी फाs लत तै लइये लेबय की करी दाम कम
आढ़त जेइबै पता चलत कोना आगि फेकय मँहगाय ये
हे माय कटहर नै किनलियै ओतहे चालीस के रहै किल्लो
अहाँसीन सेहो एक-दुइ किनै पुज्जी कोना दितिहै फँसाय ये
"शांतिलक्ष्मी" सोचय काल्हि चाहा-चिड़ै जकाँ भल्हों होइ अलोपित
कुजरनीक बोली आइ गामक छिये बड़ अनुप मिठाय ये
.......वर्ण २३.........
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