प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल-----
बिगड़लो रुपकेँ नकल करैए आब लोक
नकलोकेँ यथार्थ संजोगि राखैए आब लोक
दायित्व बुझैए मात्र अपन स्वार्थपूर्ति लेल
अनकामे अपनाकेँ विलगा लैए आब लोक
धुँआधार हँकैए गप्प लोक कल्पनाकेँ भावेँ
यथार्थमे अपनाकेँ सुनगा लैए आब लोक
जीबनक दशा-दिशा तय करैए मात्र स्वंय
भाइ देखावामे स्यंवकेँ हेरा लैए आब लोक
देखू पहिनेसँ आरक्षित भ'केँ जिबैए सभ
मुदा बेर पड़ने देखार होइए आब लोक
स्तरसँ उपर जीबाक भ' गेलैए परिपाटी
पाइक फेरमे भ्रष्टाचारी भेलैए आब लोक
आखर---17
bahut nik gajal
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