सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

गजल

कहलन्हि ओ मंदीरमे  नहि पीबू एतए शराब
कोनठाम ओ नहि छथि कहु पीबू ततए शराब

ई  नहि अछि खराप बदनाम एकरा केने अछि
ओ की बुझत भेटलै नहि जेकरा कतए शराब

मरलाबादो हम नहि पियासल जाएब स्वर्गमे
जाएब जतए सदिखन भेटए ओतए शराब

मारा-मारि भऽ रहल अछि जाति पातिकेँ नामपर
मेल देखक हुए तँ  देखू  भेटए जतए शराब

सभ गोटेकेँ निमंत्रण ससिनेह मनुदैत अछि
आबै जाए जाउ सभमिल पीब बहुतए शराब

(सरल वार्णिक वर्ण, वर्ण-१९)

@ जगदानन्द झा ‘मनु’

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों