अहाँ हँसैत रहि हमरा देखैत रहि
अहाँके नव-नव गीत सुनाबैत रहि
अहाँ रुसल रहि हम मनाबैत रहि
गुणगान अहाँकेँ सगरो गाबैत रहि
अहाँ राति भरि निचैन सँ सुतल रहि
जागि उठिते अहाँ केँ हम देखैत रहि
अहाँ केखनो हँसियो सँ पाछु जे देखब
ताहिखन हम जीबैत नै मरैत रहि
हमर जिबन अहाँ लेल बनल अछि
जिबन भरि अहींके लेल जिबैत रहि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१५)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-१६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें