गुमान जिनका पर छल ओ मुँह मोरि लेलैंह
दर्दक इनाम दय, खुसी सँ नाता जोरि लेलैंह
हमर दर्द कए आब ओ समझै छथि मखोल
छन में हँसि कय, हमरा सँ नाता तोरि लेलैंह
ओ की बुझता पियार केनाई ककरा कहैत छै
जए घरी-घरी में अपन करेज जोरि लेलैंह
पियारक फूल पर चलब आब ओ की सीखता
विरह के अंगार पर चलब जे छोरि लेलैंह
'मनु' नादान, नै हुनका मिसियो भरि चिन्हलहुँ
मोनक बात की, करेजो हमर ओ फोरि लेलैंह
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-18)
जगदानन्द झा 'मनु'
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