रविवार, 12 फ़रवरी 2012

गजल


जरि-जरि झाम बनलहुँ हम
सोना नहि बनि पएलहुँ हम

कतेक अभागल हमर भाग
अपन सोभाग हरेलहुँ हम

अपन जीबन अपने लेलहुँ
किएक लगन लगेलहुँ हम

सुगँधा अहाँ के विरह में देखु
की की जरलाहा बनलहुँ हम

अहाँ विरह के माहुर पिबैत
मरनासन आब भेलहुँ हम

जतेक हमर मनोरथ छल
संगे सारा में ल अनलहुँ हम

मातल प्रेमक जडित आगि में
खकसिआह मनु भेलहुँ हम

(सरल  वार्णिक बहर, वर्ण -12) 
जगदानन्द  झा 'मनु'

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों