प्रस्तुत अछि एहन गजल जे की ओमप्रकाश आ मिहिर झाक सहयोगसँ बनल अछि। ताड़ी आ छौंडी हमर प्रिय विषय अछि। तँए अधिकार सहित हिनकर लिखल शेर सभकेँ हम अपन कहि रहल छी। आशा अछि जे दूनू गोटेंकेँ खराप नै लगतन्हि।
जखन भरल गिलास भेटैए ताड़ीखानामे
भाइ हमरा स्वर्गे सन लगैए ताड़ीखानामे
लबनी छै भरल फेनसँ चिखना छै राखल
पीला पर मरलो मोन जिबैए ताड़ीखानामे
भेटत चकाचक मुदा नै छै निसाँ विदेशीमे
इ बात तँ सभ जोरसँ बजैए ताड़ीखानामे
निसाँ एकर बिसरा देलक सभटा झंझटि
आब हुनकर इयाद अबैए ताड़ीखानामे
हँसी ओकर ठोरक कीनि लेलकै पाइबला
चुपचाप बैसल दिन गनैए ताड़ीखानामे
भाइ जँ बाँटि-चूटि पीब तँ राजा घर जाएब
असगरें अपसुआर्थी पिबैए ताड़ीखानामे
सच तँ रहैए सदिखन छाती तानि ऐठाम
देखू फूसि तँ कोनटा पकड़ैए ताड़ीखानामे
अनचिन्हार नै जखन ओ बैसल एकठाम
लबनी देखि खुदा ओम कहैए ताड़ीखानामे
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