अपने पुरखाक मानदानक जड़ि कोड़य मे सभ लागल छै
कियो ककरो कहै घताह कियो ककरो कहै निटट पागल छै
बाँसक बंश केँ उकनै बाँसे देखू कुढ़ैड़क पोन मे छै पैसल
फ़ाटैत मानक चद्दरि केँ सिबै सुईक पोन कियै नै तागल छै
अपने लोकक टाँग घिचैत बेंग केर बनल सभकियो खिस्सा
माय सुमैथिलीक करमे बुझाइत आइ भs गेल अभागल छै
बरदक कान्हक पालो जनु बुझाइत धीयापुता केँ बड़ भारी
छुट्टा खाइत बौआइत एनाहैत जेना अड़िया बछ्छा दागल छै
अपन लोकवेद केँ आगु करय आइ जखन दुनियाँ चेतल
हमसभ निभेर भेल तैयो सुतल, कहु के कतय जागल छै
अहंकारक धाह तापैत मैथिल जनगण छथि अगरमस्त
समाजक एहन विचित्र स्वभाव सेँ "शांतिलक्ष्मी"यो नै बागल छै
..........वर्ण २४........
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