रुबाइ-15
अहीँक प्रेमक छाह जीब' चाहै छी
अहीँक आँचरक हवा पीब' चाहै छी
अपन फाटल करेजा सीब' चाहै छी
अहीँक नैनक शराब पीब' चाहै छी ।
रुबाइ-16
सूर्यक प्रखर रश्मि सन चमकैत रहू
शरदक इजोरिया सन दमकैत रहू
कामिनी रातरानी सन गमकैत रहू
रुन-झून पायल पहिरि छमकैत रहू ।
रुबाइ-17
अहाँक केश सँ झहरैत पानिक बुन्नी
अहाँक गाल सँ ससरैत पानिक बुन्नी
अहाँक ठोर सँ टपकैत पानिक बुन्नी
हमरो देह सँ टघरैत पानिक बुन्नी ।
रुबाइ-18
घोरनक छत्ता झाड़ि पानि ढ़ारि देबौ
एकहि चाट मे धरती पर पारि देबौ
रै खचराहा खचरै सभ घोसारि देबौ
मैथिलीक अपमान करब विसारि देबौ ।
रुबाइ-19
जौँ डेनधऽ चलबे संग तऽ तारि देबौ
नैतऽ कलमक मारि, गत्र ससारिदेबौ
मिथिलाक विरोधी, मारि खेहारिदेबौ
रचलाहा प्रपंच पर पानि ढ़ारि देबौ ।
रुबाइ-19
महगीक आगि मे जरलै जनता के बटुआ
दिन-राति एक तीमन पिबैछी झोर पटुआ
सरकार के विरोध मे लगबैत छल जे नारा
खसल छै सड़क पर से लोक लटुआ-लटुआ ।
रुबाइ-20
छाक भरि के आइ पीबय दिअ' हमरा
पोख भरि के जिनगी जीबय दिअ' हमरा
खोँचाह बात से लागल खोँच, फाटल,
गुदरी भेल जिनगी सीबय दिअ' हमरा ।
रुबाइ-21
सीता चरण नूपुर झनक झमकैत रहय
बाड़ी अयाची फूल सदति गमकैत रहय
जनकक खेतक माटि माथ सजबैत रहय
मैथिल-मिथिला कीर्ति जगत पसरैत रहय ।
रुबाइ-22
धिया सिया सन घर-घर मे जनमैत रहय
शंकर बनिकऽ पूत अंगना मे खेलैत रहय
उगना सन केर चाकर बाँहि पुरैत रहय
हरियर खेत-पथार सदति बिहुँसैत रहय
रुबाइ-23
कल-कल कमला कोशी निर्मल बहैत रहय
छल-छल गंगाक निश्छल जल छलकैत रहय
बागमती गंडक धरती जी जुड़बैत रहय
माछ मखानक डाला नित सजबैत रहय
रुबाइ-24
उज्जर परती हरिया गेलै जेना
दियादी झगड़ा फरिया गेलै जेना
लागल भीड़ छिड़िया गेलै जेना
मोनक बात मरिया गेलै जेना ।
रुबाइ-25
अनका कनिते देख भभाकऽ लोक हँसैए
अपन विपति के बेला देखू कोना कनैए
अनकर कान्ह कोदारि हल्लुक लगैछै जकरा
अपना हाथ सँ धरिते बेंट सैह लोक कुथैए ।
रुबाइ-26
नाङट गरीब, माने हकन्नकनैए
फैशने चूर धनिको, नङटे नचैए
देखू नङटा, नङटे के देखिहँसैए
एकदोसर के देख संतोष धरैए ।