गजल-४६
गुप्फ अन्हार, नहि हाथो-हाथसुझैए
आनक बात कोन, परिजनो हुथैए
जकरा लेसर्वस्व अर्पण कएलहुँ
सैह हमरामतलबी लोक बुझैए
खून पसेनाबहाबी,मुदा छीदरिद्र
भिखमंगा बौसैए, धनिकहा लुझैए
कत्तौ करोटफेरै लोक सड़क पर
कतहु कुक्कुरो पलंग पर सुतैए
केओ भूखे पेट,रकटल प्राण,कानै
"चंदन"पाचकक चुर्णो खाय कुथैए
--------------वर्ण-१४-------------
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