सियाराम झा सरस जीक संपादनमे बर्ख 1990मे " लालकिला आ लोकवेद " नामक एकटा साझी गजल संग्रह आएल। एहि संग्रहमे गजलसँ पहिने तीनटा भाष्यकारक आमुख अछि। पहिल आमुख संपादक जीकेँ छन्हि आ ओ तकर शुरुआत एना करै छथि----" समालोचना आ साहित्यिक इतिहास लेखनक क्षेत्रमे तकरे कलम भँजबाक चाही जकरा ओहि साहित्यिक प्रत्येक सुक्ष्तम स्पंदनक अनुभूति होइ......."। अर्थात सरसजीकेँ हिसाबें कोनो साहित्यिक विधाक आलोचना, समीक्षा, वा ओकर इतिहास लेखन वएह कए सकैए जे की ओहि विधामे रचनारत छथि। जँ हम एकर व्याख्या करी तँ ई नतीजा निकलैए जे गजल विधाक आलोचना वा समीक्षा वा ओकर इतिहास वएह लीखि सकै छथि जे की गजलकार होथि। मुदा हमरा आश्चर्य लगैए जे ने इ. 1990सँ पहिले सरस जी ई काज केलाह आ ने 1990सँ 2008 धरि इ काज कए सकलाह। 2008केँ एहि दुआरे हम मानक बर्ख लेलहुँ जे कारण 2008मे हिनकर मने सरस जीक एखन धरिक अंतिम गजल संग्रह "थोड़े आगि-थोड़े पानि" एलन्हि मुदा ओहूमे ओ एहन काज नै कए सकलाह। आ बर्ख 2008मे गजल विधा पर केन्द्रित ब्लाग " अनचिन्हार आखर " आएल जाहिमे गजलक व्याकरण आ आलोचना पर पर्याप्त काज भेल। आ गजल विधाकेँ सरस जी आ हुनक टीमसँ छुटकारा प्राप्त भेल। आ जे काज 100साल मे नहि भेल से मात्र एक साल पाँच मासमे गजेन्द्र ठाकुर कए देखेलाह आ मैथिली गजलकेँ पहिल गजल शास्त्र देलाह। ई हमरा हिसाबें कोनो गजलकारक सीमा भए सकैत छलै मुदा सरस जीक दोहरा चरित्र ओही आमुख के तेसर आ चारिम पृष्ठमे भए जाइत अछि जतए सरस जी लिखै छथि-------" मैथिली साहित्यमे तँ बंगला जकाँ गीति-साहित्यिक एकटा सुदीर्घ परंपरा रहलैक अछि। गजल अही परंपराक नव्यतम विकास थिक, कोनो प्रतिब्द्ध आलोचककेँ से बुझ' पड़तैक। हँ ई एकटा दीगर आ महत्वपूर्ण बात भए सकैछ जे मैथिलीक समकालीन आलोचकक पास एहि नव्यतम विधाक आलोचना हेतु कोनो मापदंडिके नहि छन्हि। नहि छन्हि तँ तकर जोगार करथु.........."आब ई देखल जाए जे एकै आलेखमे सरस जी कोना दोहरापन देखा रहल छथि। आलेखक शुरुआतमे हुनक भावना छन्हि जे " जे आदमी गजल नै लीखै छथि से एकर समीक्षा वा इतिहास लेखन लेल अयोग्य छथि मुदा फेर ओही आलेखमे ओहन आलोचकसँ गजल लेल मापदंड चाहै छथि जे कहियो गजल नहि लिखला। भए सकैए जे सरस जी ई आरोप सरस जी अपन पूर्ववर्ती विवादास्पद गजलकार मायानंद मिश्र पर लगबथि होथि। जे की सरस जीक हरेक आलेखसँ स्पष्ट होइत अछि। मुदा ऐठाम हमरा सरस जीसँ एकटा प्रश्न जे जँ कोनो कारणवश माया जी ओ काज नै कए सकलाह वा जँ मायानंद जी ई कहिए देलखिन्ह मैथिलीमे गजल नै लिखल जा सकैए तँ ओकरा गलत करबा लेल ओ अपने ( सरस जी ) की केलखिन्ह। 2008धरि मैथिलीमे १०-१२टा गजल संग्रह आबि चुकल छल। मुदा अपने सरस जी कहाँ एकौटा गजल संग्रह समीक्षा वा आलोचना केलखिन्ह। गजलक व्याकरण वा इतिहास लेखन तँ बहुत दूरक बात भए गेल। ऐ आलेखसँ दोसर बात इहो स्पष्ट अछि जे सरस जी कोनो समकालीन आलोचककेँ गजलक समीक्षा लेल मापदंड देबा लेल तैयार नै छथि। जँ कदाचित् कनेकबो सरस जी आलोचक सभकेँ मापदंड दितथिन्ह तँ संभवतः 2008 धरि गजल क्षेत्रमे एहन अकाल नै रहितै।
आब हम आबी विदेहक अंक 96 ( 15-31 December 2011)पर जाहिमे श्री मुन्ना जी द्वारा गजल पर पहिल परिचर्चा करबाओल गेल छल। आन-आन प्रतिभागीक संग-संग प्रेमचंद पंकज नामक एकटा प्रतिभागी सेहो छलाह। पंकज जी अपन आलेखमे आन बात संग इहो लिखैत छथि----"कतिपय व्यक्ति एकटा राग अलापि रहल छथि जे मैथिलीमे गजलक सुदीर्घ परम्परा रहितहु एकरा मान्यता नहि भेटि रहल छैक। एहन बात प्राय: एहि कारणे उठैत अछि जे मैथिली गजलकें कोनो मान्य समीक्षक-समालोचक एखन धरि अछूत मानिक' एम्हर ताकब सेहो अपन मर्यादाक प्रतिकूल बुझैत छथि। एहि सम्बन्धमे हमर व्यक्तिगत विचार ई अछि, जे एकरा ओहने समालोचक-समीक्षक अछूत बुझैत छथि जनिकामे गजलक सूक्ष्मताकें बुझबाक अवगतिक सर्वथा अभाव छनि। गजलक संरचना, मिजाज आदिकें बुझबाक लेल हुनकालोकनिकें स्वयं प्रयास कर' पड़तनि, कोनो गजलकार बैसिक' भट्ठा नहि धरओतनि। हँ, एतबा निश्चय, जे गजल धुड़झाड़ लिखल जा रहल अछि आ पसरि रहल अछि आ अपन सामथ्र्यक बल पर समीक्षक-समालोचकलोकनिकें अपना दिस आकर्षित कइए क' छोड़त।”------अर्थात प्रेमचंद जी सरसे जीक जकाँ भट्ठा नै धरेबाक पक्षमे छथि। सरस जी 1990मे कहै छथि मुदा पंकज जी 2011केर अंतमे मतलब 22साल बाद। मतलब बर्ख बदलैत गेलै मुदा मानसिकता नै बदलै। ओना ऐठाम हम ई जरुर कहए चाहब जे भट्ठा धराबए लेल जे ज्ञान आ इच्छा शक्ति चाही से बजारमे नै बिकाइत छै। मुदा आब ऐठाम हम ई जरूर कहए चाहब जे मायानंद मिश्रक बयान आ अज्ञानतासँ मैथिली गजलकेँ जतेक अहित भेलै ताहिसँ बेसी अहित सरस जी वा पंकज जी सन अभट्ठाकारी लोकनिसँ भेलै।
आब हमरा लोकनि आबी मुन्ना जी प्रस्तुत हुनक पहिल गजल संग्रह पर। जँ अहाँ मुन्ना जी द्वारा लिखल आमुख पढ़ब तँ नीक जकाँ बुझा जाएत जे आखिर मैथिली गजलमे मुन्नाजी किए कतिआएल रहलाह। आखिर की कारण छलै जे पंकज जी अपन खास मित्रकेँ गजल सुनबैत तँ रहलाह मुदा अपन मित्रकेँ गजल लिखबाक लेल उत्साहित केलाह जखन की हुनका बूझल छलन्हि जे मुन्ना जी गजलमे सेहो रुचि लए रहल छथि। भए सकैए जे ई आरि-खेत बला भावनाक विषय हुअए मुदा एकर परिणाम खतरनाक भेलै। अर्थात मुन्ना जी बहुत दिन धरि गजलसँ दूर रहि गेलाह। हमरा विश्वास अछि जे जँ पंकज जी ओहि समयमे मुन्ना जीकेँ भट्ठा धरेने रहितथिन्ह तँ आइ मुन्ना जी गजलमे बहुत आगू रहितथि आ मात्र इएह मुन्ना जी नै बल्कि हजारो मुन्ना जी गजलमे आगू अबितथि। मुदा एतेक भेलाक बाबजूदो हमरा खुशी ऐ बातक अछि जे मुन्ना जी कतिआएल तँ रहलाह मुदा पछुआएल नै रहलाह। आ ई बात अहाँ हुनक हरेक गजल पढ़ि कए अनुभव क' सकैत छी। चाहे ई बात व्याकरणक होइ वा भाव-भंगिमाक वा शब्द संयोजनक आइ मुन्ना जी अपन समकालीन गजलकार ( खास क' अपन मित्र वर्गादिसँ ) बहुत आगू छथि।
आशीष अनचिन्हार
5/5/12
ई आलेख मुन्ना जीक गजल संग्रह " माँ आँगनमे कतिआएल छी " केर भूमिकाक रूपमे अछि
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