प्रस्तुत अछि स्वाती लाल जीक ई गजल---
बहन्ना ओकर कत्तेक सुनिऐ बड निष्ठुर मन मीत हमर अछि
बदलैत मौसम डर लगैया बड ब्याकुल सन प्रीत हमर अछि
कहब सुनब कीछ ने बाँकी राखब हृदय के भितर आब त हम
जीबन पथ पर साथ चलब हम ओकरे संग हीत हमर अछि
बितल मास बसन्ती राग बसन्ती पतंग बनी उडि पहुँचितौं हम
लोक लाज सॉ पाएर उठल नै केहन समाज'क रीत हमर अछि
पूर्ण चन्द्र छै मुदा लगैत अमाबस अन्हार बड राति बितत कोना
प्रकाशपुँज बनी आयल जौं बुझब तखन हम जीत हमर अछि
चान'क इजोरिया सॉ मन'क अन्हरिया दुर कोना क भगबिएै हम
फेर उठल दरद मन मे बिरह भरल बस गीत हमर अछि
(बर्ण- २६)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें