प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल-------------
लोक-लोककेँ दुश्मन बुझू खाली जमाना अप्पन छै
बेर पर मित्र नै बुझै केकरो शत्रु मुदा छप्पन छै
बेर-बेगरते पएर पुजैए पाछु देखाबैए छूरी
तस्करीक मौका नै छोड़ए तैसँ नै बुझू वीरप्पन छै
नजरि गरा रहैए करैए हमला अवसर ताकि
सोंझा आबि माथ झुकाबै ईएह ओकर बरप्पन छै
उपरका मोनसँ साफ अछि भीतरसँ तँ साँपे बुझू
जँ ओ गाएत भजनो लागत भासमे कलछप्पन छै
आखर-----20
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