गजल-४९
फूल नै बनलौँतऽ की,काँट बनिगड़ैत तऽ छी
प्रेम नैकेलौँ तऽ की,संग हमर लडैत तऽ छी
अन्हार छै घरतऽ की, दीप बनि जड़ैततऽ छी
सोँझा नैहँसलौँ तऽ की,परोछ मे कनैततऽ छी
अपना नै सकलौँतऽ की, संगमे रहैत तऽछी
भऽनै जाइ आनकसंगी,से सोचि मरैततऽ छी
सुख नै देलौँतऽ की, संगे दुख कटैततऽ छी
मीत नै भेलौतऽ की, रूसल मेबौँसैत तऽ छी
बुझि कऽबकलेले हमरा,अहाँ हँसैत तऽ छी
छी अकछायल तऽकी, बात तैयोसुनैत तऽ छी
---------वर्ण-१७---------------
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