गजल-४४
मोन केर बातसदति लिखिते रहब
चौबटिया ठाढ़गजल कहिते रहब
जिनगीक बाटकतबो गड़ै काँट-कूश
हँसिते गुलाबसन गमकिते रहब
समाजो बरुघिसिऔत हमरा कादो मे
कदबे कमल बनिफुलाइते रहब
बरू कतबोझाँट-बिहाड़ि ऐत रस्ता मे
मुदा तैयो दीपआसक लेसिते रहब
'चंदन' पाथर समाजकछाती पिजाय
कलमक धार सँशत्रू हनिते रहब
--------------वर्ण-१५-----------
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