बुधवार, 30 मई 2012

रुबाइ


रुबाइ-15

अहीँक प्रेमक छाह जीब' चाहै छी

अहीँक आँचरक हवा पीब' चाहै छी

अपन फाटल करेजा सीब' चाहै छी

अहीँक नैनक शराब पीब' चाहै छी ।

रुबाइ-16

सूर्यक प्रखर रश्मि सन चमकैत रहू

शरदक इजोरिया सन दमकैत रहू

कामिनी रातरानी सन गमकैत रहू

रुन-झून पायल पहिरि छमकैत रहू ।


रुबाइ-17

अहाँक केश सँ झहरैत पानिक बुन्नी

अहाँक गाल सँ ससरैत पानिक बुन्नी

अहाँक ठोर सँ टपकैत पानिक बुन्नी

हमरो देह सँ टघरैत पानिक बुन्नी ।

रुबाइ-18

घोरनक छत्ता झाड़ि पानि ढ़ारि देबौ

एकहि चाट मे धरती पर पारि देबौ

रै खचराहा खचरै सभ घोसारि देबौ

मैथिलीक अपमान करब विसारि देबौ ।

रुबाइ-19

जौँ डेनधऽ चलबे संग तऽ तारि देबौ

नैतऽ कलमक मारि, गत्र ससारिदेबौ

मिथिलाक विरोधी, मारि खेहारिदेबौ

रचलाहा प्रपंच पर पानि ढ़ारि देबौ ।

रुबाइ-19

महगीक आगि मे जरलै जनता के बटुआ

दिन-राति एक तीमन पिबैछी झोर पटुआ

सरकार के विरोध मे लगबैत छल जे नारा

खसल छै सड़क पर से लोक लटुआ-लटुआ ।

रुबाइ-20

छाक भरि के आइ पीबय दिअ' हमरा

पोख भरि के जिनगी जीबय दिअ' हमरा

खोँचाह बात से लागल खोँच, फाटल,

गुदरी भेल जिनगी सीबय दिअ' हमरा ।

रुबाइ-21

सीता चरण नूपुर झनक झमकैत रहय

बाड़ी अयाची फूल सदति गमकैत रहय

जनकक खेतक माटि माथ सजबैत रहय

मैथिल-मिथिला कीर्ति जगत पसरैत रहय ।

रुबाइ-22

धिया सिया सन घर-घर मे जनमैत रहय

शंकर बनिकऽ पूत अंगना मे खेलैत रहय

उगना सन केर चाकर बाँहि पुरैत रहय

हरियर खेत-पथार सदति बिहुँसैत रहय

रुबाइ-23

कल-कल कमला कोशी निर्मल बहैत रहय

छल-छल गंगाक निश्छल जल छलकैत रहय

बागमती गंडक धरती जी जुड़बैत रहय

माछ मखानक डाला नित सजबैत रहय

रुबाइ-24

उज्जर परती हरिया गेलै जेना

दियादी झगड़ा फरिया गेलै जेना

लागल भीड़ छिड़िया गेलै जेना

मोनक बात मरिया गेलै जेना ।

रुबाइ-25

अनका कनिते देख भभाकऽ लोक हँसैए

अपन विपति के बेला देखू कोना कनैए

अनकर कान्ह कोदारि हल्लुक लगैछै जकरा

अपना हाथ सँ धरिते बेंट सैह लोक कुथैए ।

रुबाइ-26

नाङट गरीब, माने हकन्नकनैए

फैशने चूर धनिको, नङटे नचैए

देखू नङटा, नङटे के देखिहँसैए

एकदोसर के देख संतोष धरैए ।

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों