सीताराम झा 1891-1975
जन्म चौगामा ग्राममे १८९१ ई.मे तथा निधन १९७५ ई. मे भेलन्हि । संस्कृतमे ज्योतिष शास्त्रक अनेक रचनाक .अतिरिक्त मैथिलीमे हिनक ’अम्ब चरित’ (महाकाव्य), ’सूक्ति सुधा,’ लोक लक्षण,’ ’पढ़ुआचरित,’ ’पूर्वापर व्यवहार,’ उनटा बसात,’ ’अलंकार दर्पण’, ’भूकम्प वर्णन’, ’काव्य षट-रस’, ’मैथिली काव्योपवन’, आदि ग्रन्थ उपलब्ध अछि । हिनक गीताक मैथिली अनुवाद सेहो उपलब्ध अछि । मिथिला मोदक सम्पादन १९२० ई.सँ १९२७ ई. धरि ई कएल ।
हिनक कुल मिला कए ४-५ टा गजल उपलब्ध अछि जे की शुद्ध अरबी बहरपर अछि....... जे की मैथिली गजलक प्रारंभिक गजलमेसँ अछि।
पढ़ू हिनक समस्त उपल्बध गजल--
1
जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि बैसल छी
हमर क्यौ ने सुनैये हम सभक गुन गाबि बैसल छी
न कैलों धर्म सेवा वा न देवाराधने कौखन
कुटेबा में छलौं लागल तकर फल पाबि बैसल छी
दया स्वातीक घनमाला जकाँ अपनेक भूतल में
लगौने आस हम चातक जकां मुँह बाबि बैसल छी
कहू की अम्ब अपने सँ फुरैये बात ने किछुओ
अपन अपराध सँ चुपकी लगा जी दाबि बैसल छी
करै यदि दोष बालक तँ न हो मन रोख माता कैं
अहीं विश्वास कैँ केवल हृदय में लाबि बैसल छी
एकर बहर अछि-1222-1222-1222-122 मने बहरे हजज
1928मे प्रकाशित कविवर सीताराम झा जीक " सूक्ति सुधा ( प्रथम बिंदु )मे संग्रहीत गजल जे की वस्तुतः " भक्ति गजल " अछि---
नोट--१) कविक मूल वर्तनीकेँ राखल गेल गेल अछि। विभक्ति सभ अलग-अलग अछि जे की गलत अछि।
२) कवि द्वारा चंद्र बिंदु युक्त सेहो दीर्घ मानल गेल अछि जे की गलत अछि। प्रसंग वश ईहो कहब बेजाए नै जे कविवर अपन गजल समेत सभ कवितामे चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने छथि। शायद तँए पं गोविन्द झा जी सेहो चंद्र बिंदुकेँ दीर्घ मानै छलाह आ जकर खंडन भए चुकल अछि।
2
हम की मनाउ चैती सतुआनि जूड़शीतल
भै गेल माघ मासहि धधकैत घूड़तीतल`
अछि देशमे दुपाटी कङरेस ओ किसानक
हम माँझमे पड़ल छी बनि कै बिलाड़ि तीतल
गाँधीक पक्ष ई जे सुख जौं चहैछ सब तों
राजा प्रजा परस्पर सब ठाम रहै रीतल
एक दिस सुभास बाबू ललकारि ई कहै छथि
कय देब हम बराबरि आकाश ओ महीतल
कर्तव्य की एतए ई हमरा अहाँ पुछी तौं
मिलि जाउ मालवीवत पाटी परीखि जीतल
सभ पाँतिमे 2212+ 122+2212+ 122 मात्राक्रम अछि। बीच-बीचमे "ए" के लघु मानल गेल अछि।
3
बाउजी जागू ठारर भरै छी कियै"
व्यर्थ सूतल कि बैसल सड़ै छी कियै"
वेद पोथी पढ़ू आ अखाढ़ा चढ़ू
बाट दू में ऐकोने धरै छी कियै"
जँ थिकहुँ विप्रवंशीय सत्पुत्र तँ
पाठशालाकनामे डरै छी कियै"
बाट में काँट कै काटि आगू बढ़ू
देखि रोड़ा कनेको अड़ै छी कियै"
मेल चाहय सदा शत्रुओं सँ सुधी
बन्धुऐ में अहाँ सब लड़ै छी कियै"
आधि में माँति छी छी खाधि में जा रहल
देखि आनक समुन्नति जरै छी कियै"
साध्य में बुद्धि नौका अछैतो अहाँ
विघ्न-बाधा नदी अहाँ ने तरै छी कियै"
मायबापोक सत्कर्म हो से करू
पापपन्थीक पाला पड़ै छी कियै"
बान्हि कक्षा स्वयं आत्मा रक्षा करू
शेष जीवन अछैतो मरै छी कियै"
ई गजल कविवर सीताराम झा काव्यावली-प्रथम भाग ( संपादक, विश्वनाथ झा विषपायी)क पृष्ठ १०८सँ लेल गेल अछि। प्रकाशन वर्ष-२००८---42
सभ पाँतिमे 2122+ 122+ 122+ 12 मात्राक्रम अछि। ए, ऐ आदिकेँ लघु मानि ले गेल अछि। मतलामे रदीफ " छी किए" अछि तकर बादक शेर सभमे " छी कियै"। हमरा जनैत ई संपादकीय दोष हएत। आन शेर सभमे " छी कियै" केर बहुलता देखि मतलामे सेहो हम "छी कियै" लेलहुँ।
ऐ गजलक तेसर शेरक संदेशसँ व्यतिगत रूपें हम सहमत नै छी कारण ई शेर संकुचित समाजक परिचायक अछि।
sat-sat naman ahi mithila vibhuti ken
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