गजल आ गीत मे अंतर की छै?
गजल आ गीत मे अंतर की छै? मात्र एक अक्षर के । गीत आ गजल दूनू गाओल जाइ छै । जँ ध्वनीक तुक {राइम्स } सभ पाँति मे मिलैत रहत त' गीत वा गजल दूनू सुनै मेँ बेशी नीक लागै छै । मुदा गीत मे राइम्स नहियो हेतै त' चलतै मुदा गजल मेँ प्राय: पाँति संख्याँ 1 ,2,आ तकरा वाद 4 ,6 , 8 , 10 . . . मे हेवाक चाही । गीत मे कतेको पाँति के बाद फेर सँ मुखरा दोहराओल जाइ छै मुदा गजल मे प्राय: तुकान्त वाला पाँति बाद कहल जाइ छै । गजल कम सँ कम 10 टा पाँतिक होइ छै जकरा 2-2 पाँति के रूप मे बाँटि क शेर कहल जाइ छै । । जहिना गीतक शास्त्र व्याकरण होइ छै{सा रे ग . . .} तहिना गजलक व्याकरण होइ छै । जहिना शास्त्रीय गायण मे राग होइ छै तहिना गजल मे बहर होइ छै । जहिना गीत कोनो ने कोनो ताल . राग . मे होइ छै तहिना गजल कोनो ने कोनो बहर मे होइ छै । । आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की?
नवका गायक त' गीतक टाँग -हाथ तोड़ि क' गाबै छथि । दू तीन टा शब्द के एकै साथ जोड़ि क' गाबैत छथि बूझू जे फेविकाँल सँ साटि देने होइ । जहिना गीत मे कोनो तरहक चिन्हक {कोमा ,फूल स्टाँप , आदि} के मोजरे नै दै छथि । ओहिना
गजल मे कोना पाँति मे कोनो चिन्ह{. , ? आदि} नै देल जाइ छै ।मात्र अपन नामक आगू पिछू {" "} चिन्ह लगा सकै छी ।
आब एना किए कैएल जाइ छै से नै पूछू ? अपने सोचू ने गीते जकाँ गजलो के त' गाओल जाइ छै ।
आ आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की?
हमर एकटा मित्र गजलक बारेमे पुछलनि तँ कहलिअन्हि----
गजलक मे आबै वला किछु शब्द के देखू ।
1} शेर- शेर दू पाँतिक होइत अछि आ अपना आप मे सदिखन पूर्ण भाव दै अछि आ आन पाँति सँ स्वतंत्र रहैत अछि ।
2} गजल- कम सँ कम पाँच टा शेरके जँ किछु तुकान्तक सँग एक ठाम राखल जाए त' ओ गजल बनै छै । एकटा गजल मे एकै रंग तुकान्त हेवाक चाही ।
3} रदीफ- गजल पहिल शेर के अंतीम सँ देखू जँ कोनो एहन शब्द जे शेरक दूनु पाँति मे काँमन होइ त' ओकरा गजलक रदीफ कहबै ।
आइ चलू संगे प्रेम गीत गेबै प्रिय
एकटा प्रेमक महल बनेबै प्रिय
एहि शेर मे "प्रिय "दुनू पाँति मे अछि तेँए एकर रदीफ भेल" प्रिय" ।
आब गजलक सब शेरक दोसर पाँति मे इ रदीफ रहबाक चाही इ अनिवार्य अछि ।
4} काफिया - काफिया मने मोटा मोटी तुकान्त{राइम्स} बूझू । जँ बाजै मे एकै रंग ध्वनी बूझना जाइ यै त' ओ भेल काफिया । काफियाक तुक ओहि शब्दक अंतीम सँ पता लागै छै । जे तुकान्त गजलक पहिल पाँति मे अछि सेह आन सब पाँति मे हेवाक चाही । मतलब जे गजलक पहिल शेरक दुनू पाँति मे आ आन शेरक दोसर पाँति मेँ ।
काफिया- जेना - जेबै . खेबै . नहेबै { ऐ मे "एबै" तुकान्त भेल
गमला . राधा . चेरा . केरा {एहि मे तुकान्त "आ" भेल}
हेतै , खेबै . झेलै {ऐ मे तुकान्त"ऐ" भेल}
रोटी , हाथी . रेती{ऐ मे "ई" भेल}
झोरी . बोरी {ऐ मे"ओरी" भेल}
एनाहिते और सब मे काफिया {तुकान्त }बनत ।
गजल पहिल शेर मे रदीफ आ काफिया क्रमश: पाँतिक अंतीम सँ अनिवार्य रूप सँ हेबाक चाही । आ आन शेरक दोस पाँति मे सेहो रदीफ आ काफिया क्रमश: अंतीम सँ हेएत ।
5} मतला- गजल पहिल शेर जेकर दूनू पाँति मे रदीफ आ काफिया क्रमश: अंतीम सँ होइ एकरा मतला कहल जेतै ।
चाँद देखलौ त' सितारा की देखब
अन्हारक रूप दोबारा की देखब
प्रेमक सागर मे बड नीक लागै
डुब' चाहै छी त' किनारा की देखब
एहि मे पहिल शेरक दुनू पाँति मे काँमन "की देखब" अछि तेँए इ एहि गजलक रदीफ भेल आ रदीफक पहिले देखू , दूनू पाँति मे "सितारा "आ "दोबारा " छै एकर तुकान्त भेल "आरा" तेँए इ भेल काफिया । आब दोसर शेरक दोसर पाँति मे देखू । रदीफ "की देखब" आ तुकान्त "आरा " के संग शब्द "किनारा " अछि । । आब एहि गजलक सब शेरक दोसर पाँति मे अंत सँ रदीफ "की देखब "
आ काफिया "आरा"
तुकान्तक संग हेबाक चाही ।
तुकान्तक पाता शब्दक अंत सँ चलै छै ।
6} मकता-- गजल अंतीम शेर जै मे शाइर अपन नामक प्रयोग करै छथि ओहि गजलक मकता कहल जाइ छै ।
मेघक डरे चान नै बहरायल
नै औता "अमित" नजारा की देखब
इ भेल मकता ।
शाइर अपन सब शेर मे अपन एकै टा नामक प्रयोग करैथ । जेना हम पहिल गजल सँ"अमित" लिखै छी त' आब कतौ "मिश्र " नै लिख सकै छी ।
वेश त' एते देखू आ लिखू । और कनेटा बात छुटल अछि जे अहाँ सब जानैत छी । वर्ण वला बात । त ' आब लिखू किछ नीक गजल
किछु दिन पूर्व हमरे सन एकटा बिन पढ़ल लिखल गीतकार सँ भेट भेल ।हमरे जकाँ हुनको रचना लोकक माँथ पर द निकैल जाइ छलै । खैर ओ हमरा बतेलनि जे गीत लिखैत बेर जँ वर्ण गानि क लिखब त' गाबै मे सुविधा हेतै । आ ओ वर्ण गानब सिखेलनि । तै पर हम कहलयनि जे एना वर्ण गानि क' हम सब "गजल "लिखै छी
आ तेकर नाम दै छी
"सरल वार्णिक बहर"
आ एकर वर्ण एना गानल जाइत अछि ।
हिन्दी वर्णमाला के जतेक वर्ण अछि{अ .आ सँ ल' क' य , र . . . धरि} के एकटा वर्ण मानै छी ।
जतेक हलन्त रहै अछि तकरा मोजर नै दै छी अर्थात शुन्य{0} मानै छी ।
संयुक्ताक्षरमे संयुक्त अक्षर के एक {1} मानै छी ।
जेना की " भक्त" एहि मे 2 टा वर्ण भेल । एकटा "भ"आ एकटा "क्त" ।
एकर बाद एकटा शेर कहलौँ ।
भाग्य मे जे लिखल अछि तेँ विरह मे मरै छी
आशा केने छी कहियो त' मान नोरक धरबै
एहि शेरक दुनू पाँति मे 17 वर्ण अछि । एहि बहर मे जँ गजल लिखब त' सब पाँति मे पहिल पाँति एते वर्ण हेबाक चाही ।
ओ गीतकार कहलनि जे अहाँके वर्ण गान' आबै यै तेँए अहाँ नीक गीतकार बनब आ हमहूँ आब गजल लिखब । । गीत आ गजल मे एते समानता अछि त' आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की ?
गजल आ गीत मे अंतर की छै? मात्र एक अक्षर के । गीत आ गजल दूनू गाओल जाइ छै । जँ ध्वनीक तुक {राइम्स } सभ पाँति मे मिलैत रहत त' गीत वा गजल दूनू सुनै मेँ बेशी नीक लागै छै । मुदा गीत मे राइम्स नहियो हेतै त' चलतै मुदा गजल मेँ प्राय: पाँति संख्याँ 1 ,2,आ तकरा वाद 4 ,6 , 8 , 10 . . . मे हेवाक चाही । गीत मे कतेको पाँति के बाद फेर सँ मुखरा दोहराओल जाइ छै मुदा गजल मे प्राय: तुकान्त वाला पाँति बाद कहल जाइ छै । गजल कम सँ कम 10 टा पाँतिक होइ छै जकरा 2-2 पाँति के रूप मे बाँटि क शेर कहल जाइ छै । । जहिना गीतक शास्त्र व्याकरण होइ छै{सा रे ग . . .} तहिना गजलक व्याकरण होइ छै । जहिना शास्त्रीय गायण मे राग होइ छै तहिना गजल मे बहर होइ छै । जहिना गीत कोनो ने कोनो ताल . राग . मे होइ छै तहिना गजल कोनो ने कोनो बहर मे होइ छै । । आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की?
नवका गायक त' गीतक टाँग -हाथ तोड़ि क' गाबै छथि । दू तीन टा शब्द के एकै साथ जोड़ि क' गाबैत छथि बूझू जे फेविकाँल सँ साटि देने होइ । जहिना गीत मे कोनो तरहक चिन्हक {कोमा ,फूल स्टाँप , आदि} के मोजरे नै दै छथि । ओहिना
गजल मे कोना पाँति मे कोनो चिन्ह{. , ? आदि} नै देल जाइ छै ।मात्र अपन नामक आगू पिछू {" "} चिन्ह लगा सकै छी ।
आब एना किए कैएल जाइ छै से नै पूछू ? अपने सोचू ने गीते जकाँ गजलो के त' गाओल जाइ छै ।
आ आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की?
हमर एकटा मित्र गजलक बारेमे पुछलनि तँ कहलिअन्हि----
गजलक मे आबै वला किछु शब्द के देखू ।
1} शेर- शेर दू पाँतिक होइत अछि आ अपना आप मे सदिखन पूर्ण भाव दै अछि आ आन पाँति सँ स्वतंत्र रहैत अछि ।
2} गजल- कम सँ कम पाँच टा शेरके जँ किछु तुकान्तक सँग एक ठाम राखल जाए त' ओ गजल बनै छै । एकटा गजल मे एकै रंग तुकान्त हेवाक चाही ।
3} रदीफ- गजल पहिल शेर के अंतीम सँ देखू जँ कोनो एहन शब्द जे शेरक दूनु पाँति मे काँमन होइ त' ओकरा गजलक रदीफ कहबै ।
आइ चलू संगे प्रेम गीत गेबै प्रिय
एकटा प्रेमक महल बनेबै प्रिय
एहि शेर मे "प्रिय "दुनू पाँति मे अछि तेँए एकर रदीफ भेल" प्रिय" ।
आब गजलक सब शेरक दोसर पाँति मे इ रदीफ रहबाक चाही इ अनिवार्य अछि ।
4} काफिया - काफिया मने मोटा मोटी तुकान्त{राइम्स} बूझू । जँ बाजै मे एकै रंग ध्वनी बूझना जाइ यै त' ओ भेल काफिया । काफियाक तुक ओहि शब्दक अंतीम सँ पता लागै छै । जे तुकान्त गजलक पहिल पाँति मे अछि सेह आन सब पाँति मे हेवाक चाही । मतलब जे गजलक पहिल शेरक दुनू पाँति मे आ आन शेरक दोसर पाँति मेँ ।
काफिया- जेना - जेबै . खेबै . नहेबै { ऐ मे "एबै" तुकान्त भेल
गमला . राधा . चेरा . केरा {एहि मे तुकान्त "आ" भेल}
हेतै , खेबै . झेलै {ऐ मे तुकान्त"ऐ" भेल}
रोटी , हाथी . रेती{ऐ मे "ई" भेल}
झोरी . बोरी {ऐ मे"ओरी" भेल}
एनाहिते और सब मे काफिया {तुकान्त }बनत ।
गजल पहिल शेर मे रदीफ आ काफिया क्रमश: पाँतिक अंतीम सँ अनिवार्य रूप सँ हेबाक चाही । आ आन शेरक दोस पाँति मे सेहो रदीफ आ काफिया क्रमश: अंतीम सँ हेएत ।
5} मतला- गजल पहिल शेर जेकर दूनू पाँति मे रदीफ आ काफिया क्रमश: अंतीम सँ होइ एकरा मतला कहल जेतै ।
चाँद देखलौ त' सितारा की देखब
अन्हारक रूप दोबारा की देखब
प्रेमक सागर मे बड नीक लागै
डुब' चाहै छी त' किनारा की देखब
एहि मे पहिल शेरक दुनू पाँति मे काँमन "की देखब" अछि तेँए इ एहि गजलक रदीफ भेल आ रदीफक पहिले देखू , दूनू पाँति मे "सितारा "आ "दोबारा " छै एकर तुकान्त भेल "आरा" तेँए इ भेल काफिया । आब दोसर शेरक दोसर पाँति मे देखू । रदीफ "की देखब" आ तुकान्त "आरा " के संग शब्द "किनारा " अछि । । आब एहि गजलक सब शेरक दोसर पाँति मे अंत सँ रदीफ "की देखब "
आ काफिया "आरा"
तुकान्तक संग हेबाक चाही ।
तुकान्तक पाता शब्दक अंत सँ चलै छै ।
6} मकता-- गजल अंतीम शेर जै मे शाइर अपन नामक प्रयोग करै छथि ओहि गजलक मकता कहल जाइ छै ।
मेघक डरे चान नै बहरायल
नै औता "अमित" नजारा की देखब
इ भेल मकता ।
शाइर अपन सब शेर मे अपन एकै टा नामक प्रयोग करैथ । जेना हम पहिल गजल सँ"अमित" लिखै छी त' आब कतौ "मिश्र " नै लिख सकै छी ।
वेश त' एते देखू आ लिखू । और कनेटा बात छुटल अछि जे अहाँ सब जानैत छी । वर्ण वला बात । त ' आब लिखू किछ नीक गजल
किछु दिन पूर्व हमरे सन एकटा बिन पढ़ल लिखल गीतकार सँ भेट भेल ।हमरे जकाँ हुनको रचना लोकक माँथ पर द निकैल जाइ छलै । खैर ओ हमरा बतेलनि जे गीत लिखैत बेर जँ वर्ण गानि क लिखब त' गाबै मे सुविधा हेतै । आ ओ वर्ण गानब सिखेलनि । तै पर हम कहलयनि जे एना वर्ण गानि क' हम सब "गजल "लिखै छी
आ तेकर नाम दै छी
"सरल वार्णिक बहर"
आ एकर वर्ण एना गानल जाइत अछि ।
हिन्दी वर्णमाला के जतेक वर्ण अछि{अ .आ सँ ल' क' य , र . . . धरि} के एकटा वर्ण मानै छी ।
जतेक हलन्त रहै अछि तकरा मोजर नै दै छी अर्थात शुन्य{0} मानै छी ।
संयुक्ताक्षरमे संयुक्त अक्षर के एक {1} मानै छी ।
जेना की " भक्त" एहि मे 2 टा वर्ण भेल । एकटा "भ"आ एकटा "क्त" ।
एकर बाद एकटा शेर कहलौँ ।
भाग्य मे जे लिखल अछि तेँ विरह मे मरै छी
आशा केने छी कहियो त' मान नोरक धरबै
एहि शेरक दुनू पाँति मे 17 वर्ण अछि । एहि बहर मे जँ गजल लिखब त' सब पाँति मे पहिल पाँति एते वर्ण हेबाक चाही ।
ओ गीतकार कहलनि जे अहाँके वर्ण गान' आबै यै तेँए अहाँ नीक गीतकार बनब आ हमहूँ आब गजल लिखब । । गीत आ गजल मे एते समानता अछि त' आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की ?
लेख बहुत नीक लागल अमित जी ।
जवाब देंहटाएंदुहु विधा पर समान अधिकार रखैत, समान नजरि सँ दृष्टिपात कएल अछि ।
नीक विवेचना
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक...!
जवाब देंहटाएं