गजल-५७
नैनक काजर परमोहित छै सगरो जगत
जड़ैत डिबियाकेर मोनक मरम के बुझत ?
मदान्ध केसरोकार नहि होइत छै ककरो सँ
फेर सरकार केकोना दीनक लचारी सूझत ?
गोर गाल, कारी काजरदेखि अन्हरेलै युवक
तखन कनैत मायकआँखिक नोर के पोछत ?
काँख तरनुकौने रहैछै लोक पानिक बोतल
तखन फेरचौड़ीमे के इनार पोखरि खुनत ?
गाम भऽगेलैसुन्न मुदा करे चकमक शहर
"चंदन" ईबढ़ैत बिषमता के सम के करत?
-------------वर्ण-१८--------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें