गजल-५८
मानवता के डेनपकड़ि मनुक्ख बनैत भगवान हेतै
मुदा, पतित के पशुकहब जौ, पशुओ के अपमानहेतै
मूरख भूपतिबनि बैसलै,लुधकी लगले चाटुकार छै
तखन जगत मेअहीँ कहू की विद्या केर सनमान हेतै?
रामक मर्यादातोड़िताड़ि,गौतमक विचार के छोड़िछाड़ि
गाँधीक देखाओलपथके त्यागि की मानव के कल्याण हेतै ?
अंगना बिचदेबाल बनल छै,टुटि गेलै दलान पुरना
बेढ़लफरकी-टाट छै सगरो फेर कत्त खरिहान हेतै ?
द्वेश-देयादिमोन मे जकरा,जे नै बनल समांग ककरो
"चंदन"तकरा कहत दरिद्रे उचगर भलेँ मकान हेतै.
-------------वर्ण-२२---------------
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