जे लोकनि गजलसँ घबराइ छथि तनिका लेल एकटा प्रसाद------------
किछु दिन पहिने हम तुलसीदस रचित श्लोकक दूपाँतिकेँ मात्रा क्रममे देने रही आ देखेने रही जे ओकर मात्रा क्रम " ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ " छै जकरा अरबीमे बहरे मुतकारिब कहल जाइत छै। किछु गोटेकेँ मोनमे शंका उठल हेतैन्ह जे तुलसीदास जी तँ मुसलमानक शासन काल मे भेल छलथि तँ फुनका फारसीकेँ ज्ञान हेबे करतन्हि। तँए तुलसिदास जी अरबी बहरमे लीखि सकै छलाह। मुदा आइ जे हम दए रहल छी से थिक आदि शंकराचार्य द्वारा रचित " निर्वाण षटकम् "। मजेदार बात ई छै जे एकरो मात्राक्रम " ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ " छै जे की बहरे मुतकारिब छै। आब सोचू अरबी बहरकेँ निर्माण ८म शताब्दीमे भेल छल। मुदा ताहिसँ पहिनेहे आदि शंकराचार्य बहरे मुतकारिबमे श्लोक लीकी बैसल छलाह। आब जे अज्ञानी लोकनि गजलकेँ आयातित विधा कहैत छथि हुनकर भारतीय ज्ञान बिलकु कम्मे छन्हि।
निर्वाण षटकम्॥
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
तँ पढ़ू आसूनू ई स्त्रोत आ गजल कमला-कोसीमे डुब्बी मारू
निर्वाण षटकम्॥
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
तँ पढ़ू आसूनू ई स्त्रोत आ गजल कमला-कोसीमे डुब्बी मारू
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