जे लोकनि गजलसँ घबराइ छथि तनिका लेल एकटा प्रसाद------------
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं
विभू व्यापकम् ब्रम्ह वेदः स्वरूपं
पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि---- ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ
दोसरो पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि-----ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ
नोट--- दोसर पाँतिमे ब्रम्हकेँ गेबा कालमे बर् = दीर्घकएल जाइत छै।
अरबीमे एहि बहरकेँ बहरे मुतकारिब कहल जाइत छै। जे अज्ञानी लोकनि गजलकेँ आयातित विधा कहैत छथि हुनकर भारतीय ज्ञान बिलकु कम्मे छन्हि।
तँ सूनू ई स्त्रोत आ गजल कमला-कोसीमे डुब्बी मारू।
दोसरो पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि-----ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्र
नोट--- दोसर पाँतिमे ब्रम्हकेँ गेबा कालमे बर् = दीर्घकएल जाइत छै।
अरबीमे एहि बहरकेँ बहरे मुतकारिब कहल जाइत छै। जे अज्ञानी लोकनि गजलकेँ आयातित विधा कहैत छथि हुनकर भारतीय ज्ञान बिलकु कम्मे छन्हि।
तँ सूनू ई स्त्रोत आ गजल कमला-कोसीमे डुब्बी मारू।
जगदानन्द झा 'मनु' ज्ञानक सागर सँ नीक मोती निकाललहुँ, आबो जए गजल कें आयातित विधा कहैत छथि हुनका लेल कहाबत छैन .. तोर' नै आबए त' अंगूर खट्टा
18 April at 12:58 · · 1
- जगदानन्द झा 'मनु' ज्ञानक सागर सँ नीक मोती निकाललहुँ, आबो जए गजल कें आयातित विधा कहैत छथि हुनका लेल कहाबत छैन .. तोर' नै आबए त' अंगूर खट्टा18 April at 12:58 · · 1
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