गजल-३३
करेजकेँ पाथर
बना लिअ
पिरीतकेँ आखर
मिटा दिअ
सपन जनम
भरिकेर देखल
कहूतऽ की
नोरहि भसा दिअ
जड़ैत छै जे
आगि विरहक
कहैत छी तकरा
मिझा दिअ
जनमक संगी
बनकि बदला
कहैत छी नाता
कटा लिअ
रकटल
"चंदन" मोन बेकल
कियोतऽ प्रीतम के बुझा दिअ
/12-1222-122
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