बुधवार, 16 मई 2012

गजल


रामलोचन ठाकुर मैथिली आलोचनामे कतिआएल लोक छथि। हिनक रचना मात्र आलोचना नै माँगैए बल्कि आलोचनाक आलोचना सेहो मागैए। श्री रामलोचन जी वाम रचनाकार छथि। मुदा ने यात्री जी आ ने हिन्दीक राम विलास शर्मा जकाँ जकाँ वामी छथि। ई वाम रहितो अपन परंपराकेँ जोगा कए रखलाह|आ तँए हम हिनका मात्र प्रगतिशील लेखक नै बल्कि एहन प्रगति शील लेखक
मानै छी जे की अपन सार्थक परंपराकेँ सेहो पकड़ि रखलाह। रामलोचन जी आधुनिक कविताक संग-संग गीति काव्य पर बहुत काज केलन्हि अछि। कुंडलिया हिनक प्रिय वस्तु छन्हि। ई गीतो लिखलन्हि अछि। ई गजलो लिखलन्हि अछि मुदा ओ क्रम विन्यास गीत कविता जकाँ बना देने छथिन्ह, आ एहि संदर्भक चर्चा गजेन्द्र ठाकुर जी अपन गजल शास्त्र आलेख भाग-१४मे केने छथिन्ह। तँ आइ प्रस्तुत अछि हुनक एकटा एहन गजल जे कि गिथ-कविताक क्रममे अछि। ई गजल हुनक अपूर्वा नामक काव्य ग्रंथसँ लेल गेल अछि। ऐ गजलमे गजलक व्याकरणक बहुत दोष भेटत। मुदा आइयो जखन ई अवस्था छै जे सभ व्याकरण उपल्बध रहितो महान लोक सभ गलत गजल लिखै छथि तखन १९९६मे प्रकाशित हुनक ई पोथी आ १९९०केँ लगीच हुनक रचनामे ई दोष भेटब स्वाभाविक छै। तथापि आउ रसास्वादन करी ऐ गजलकेँ--------


कर्मक नहि ताल-मेल तागि रहल नूआकेँ
देखएने दूषित रक्त गारि पढ़ए भूआकेँ

मास बर्ख के गनैछ बीति गेल आध शतक
रोटी नदारद बात करे पूआकेँ

बेचि रहल देश संग भूत आ भविष्यहुँकेँ
नेता कहाबए कहू लाज छै बेठूआकेँ









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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों